नर्क बने थे कारागार
पता नहीं है वर्तमान को, अतीत का वह हाहाकार।
नारकीय था जीवन अपना, नर्क बने थे कारागार ॥
फौलादी फाटक के भीतर विकराल भयानक दीवारें।
करते थे बंद सीखंचों में, बंदी बेड़ी की झंकारें ॥
खड़ी चक्कियाँ भी मिलती थीं, मोती मक्का पिसवाने को।
कोलहू में भी जोते जाते, सरसों का तेल निकलवाने को ॥
जेल अवज्ञाएं करने पर, कोड़े बरसाते थे क्रूर ।
काल कोठरियों में रह कर भी, सही यातनाएं भरपूर ॥
सुनता नहीं किसी की कोई, मचा हुआ था अत्याचार ।
स्वतंत्रता के दीवानों पर लटकी थी नंगी तलवार ॥
जिनके नहीं लगा है काँटा, उन्हें नहीं भाले का ज्ञान ।
पराधीनता के कष्टों का आज किसे हो सकता ज्ञान ॥
“कैदी- जंगले- ताले- लालटेन, जी हुजुर ! सब ठीक है साहब ।”
लम्बरदार भी है ड्यूटी पर, कोई नहीं कहीं से गायब ॥
कान फोड़ देने वाले थे, रात- रात भर के वह गश्त ।
सड़े गले कम्बल खटमल भी, करते रहते थे संत्रस्त ॥
मिटटी सीमेंट मिली रोटी थी पीने को था गन्दा पानी।
दालों में तैरते थे जीव- जंतु, शैतानों की वह थी शैतानीं ॥
थीं बंद मुलाकातें फिर भी, जाते मोह व्यथा के मारे ।
उनको भी धक्के मुक्कों से, दिखला देते दिन में तारे ॥
गोरों के बूटों की ठोकर, खाकर किसे न आता क्रोध।
जेलों की अमानुषिकता का, हो जायगा इससे बोध ॥
– करुणेश
योगदान: सौम्या गुप्ता (पौत्री)
I am the son of Staya Narain Verma freedom fighter a close associate of shri karunesh ji and the main accused of bomb case. He has published and edited many news papers like Vishfot, Amar Ghoshna and Vishwanad. It is good to hear from the page of karunesh ji.-Jai Prakash Verma ,Chandigarh