राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी
श्री रोशन लाल गुप्त “करुणेश” ने १९६९ के राष्ट्रपति के चुनाव में उम्मीदवारी के लिए प्रयास किया था. राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचन अधिकारी श्री जी. के. भटनागर से प्राप्त नामांकन पत्र लेकर करुणेश जी ने प्रदेश के नगरों-महानगरों में संसद सदस्यों व् विधायकों से ‘स्वराज्य’ के संपादक श्री आनंद शर्मा के साथ संपर्क किया. देश भर के सही समाचार पर्त्रों ने करुणेश जी के राष्ट्रपति पद पर खड़े होने के निर्णय के समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित किया.
नवभारत टाइम्स (२५ जून, १९६९) के अनुसार – “श्री रोशन लाल गुप्त ‘करुणेश’ जिन्होंने देस्ख को आजाद कराने में अपना जीवन समर्पित किया है, ने भारत के राष्ट्रपति के पद के लिए खड़े होने का निर्णय लिया है… श्री गुप्त जिनके जीवन का काफी बड़ा भाग जेलों में बीता है, कड़ी पहनते हैं.”
करुणेश जी की राष्ट्रपति पद हेतु उम्मेदवारी के निर्णय के समाचारों को पढ़ कर राजनेताओं, विद्वानों, पत्रकारों के अतिरिक्त श्री गोवर्धन मथ्पुरी के अनंत जगद्गुरु शंकराचार्य श्री निरंजनदेव तीर्थ जी महाराज ने भी अपने शुभकामना सन्देश प्रदान किये.
श्री विद्या धर्म बर्धिनी संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य सही राधाकृष्ण गौड़ ने अपनी कामना निम्न श्लोकों में व्यक्त की –
“सिद्ध ये भार्तीयाना धन्यो गुप्त महोदय: |
अन्करोत सततं राष्ट्र नायक सत्यदय || ”
(अर्थात – हम सभी भारतियों की सिद्धि के लिए श्री गुप्त महोदय राष्ट्रपति पद को अलंकृत करें.)
“रोशनाज्वित लालोययम करुना करुणालय: |
हरिन्यत्पथ तामिस्म घोर प्रचलित भुवि || ”
(अर्थात – श्री रोशल लाल जी जो करुणा के समुद्र हैं, में आशा करता हूँ कि वे पृथ्वी पर प्रचलित घोर अन्धकार का अवश्य हरण करेंगे.)
करुणेश जी ने अपना नामांकन पत्र भर कर डा. प्रकाशनारायण गुप्त के साथ कांग्रेस के प्रदेश महासचिव श्री हेमवती नंदन बहुगुणा से मिले. श्री बहुगुणा ने आपसे कांग्रेस के अनुशाषित सिपाही होने के नाते अधिकृत प्रत्याशी श्री वी. वी. गिरि के समर्थन में नामांकन वापस करने का अनुरोध किया.
तत्पश्चात करुणेश जी ने अपने आगे के कार्यक्रम पर विराम लगा कर सभी का आभार व्यक्त किया.
– संजय शेखर गुप्त (पुत्र)
(स्रोत: श्री रोशन लाल गुप्त, करुणेश अभिनंदन ग्रंथ, प्रकाशित – अक्टूबर, १९८७.)
‘मूल्यों के प्रति समर्पित रही एक महान आत्मा’