स्वतंत्रता दिवस
स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा
पूर्ण स्वराज, लाहौर कांग्रेस, 26 जनवरी 1930 की घोषणा
हमारी मान्यता है कि अन्य व्यक्तियों के समान यह भारतीय जनों का भी अधिकार है कि वे अपनी मिट्टी के फलों का आनन्द लेने और जीवन की अनिवार्यताएं पाने के लिए स्वतंत्रता का आनन्द उठाएं, ताकि उन्हें वृद्धि के पूरे अवसर मिल सकें। हमारी यह भी मान्यता है कि यदि सरकार किसी व्यक्ति को इनसे वंचित रखती है और दमन करती है तो लोगों को इसे परिवर्तित करने या हटाने का अधिकार है। भारत में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय जनों को न केवल स्वतंत्रता से वंचित रखा है बल्कि जन समूहों का शोषण किया है, तथा पतन के साथ भारत पर शासन किया है और इसे ब्रिटिश संयोजन को समाप्त करने के साथ पूर्ण स्वराज प्राप्त करना चाहिए।
भारत का आर्थिक पतन हुआ है। हमारे नागरिकों से लिया गया राजस्व हमारी आय के अनुपात में से लिया जाता हैं। हमारी औसत आय प्रतिदिन 7 पैसे है और हम 20 प्रतिशत का भारी कर देते हैं जो परिश्रम से किए गए भूमि राजस्व से और 3 प्रतिशत नमक पर कर लिया जाता है, जो गरीबों पर बहुत भारी है।
ग्रामोद्योग, जैसे हाथ से कताई, को नष्ट कर दिया गया है, जिससे पूरे वर्ष में कम से कम 4 माह श्रमिक बेकार बैठे रहते हैं और हस्तशिल्प में उनकी कुशलता मंद पड़ती जा रही है तथा इसके स्थान पर उन्हें कुछ नहीं मिलता, जैसा अन्य देशों में होता है, इस प्रकार हस्तशिल्प नष्ट हो गया है।
सीमा शुल्क और मुद्रा इस प्रकार बनाए गए हैं कि श्रमिकों पर और अधिक भार आता है। हमारे आयातों में ब्रिटेन में निर्मित सामानों की बहुतायत है। सीमा शुल्क प्रभार में ब्रिटिश निर्माताओं के साथ पक्षपात किया जाता हैं और इनसे प्राप्त राजस्व का उपयोग जन समूहों पर भार कम करने में नहीं किया जाता, बल्कि इसे अत्यंत भव्य प्रशासन को चलाने में उपयोग किया जाता है। आदान-प्रदान में मनमानी अब भी की जाती है, जिसके परिणामस्वरूप लाखों लोगों को देश से दूर भेजा गया है।
राजनैतिक रूप से भारत की स्थिति इतनी कमजोर पहले कभी नहीं रही जितनी ब्रिटिश राज में है। लोगों को किसी सुधार से वास्तविक राजनैतिक शक्ति नहीं मिली है। हम में से उच्चतम व्यक्ति को भी विदेशी प्राधिकारी के सामने झुकना होता है हमें अपनी राय की मुक्त अभिव्यक्ति और मुक्त संबद्धता का अधिकार नहीं दिया जाता है और हम में से बहुत सारे देशवासियों को विदेश में निर्वासित रूप में रहने की बाध्यता है और वे अपने घर वापस नहीं लौट सकते। पूरी प्रशासनिक प्रतिभा को नष्ट कर दिया गया है और नागरिकों को छोटे-मोटे ग्रामीण कार्यालयों और लिपिक स्तर के पदों से संतुष्ट होना पड़ता है।
वर्तमान में शिक्षा की प्रणाली ने हमें अपनी जड़ों से काट कर फेंक दिया है और हमारा प्रशिक्षण ऐसा है कि हमें जोड़ने वाली उन्हीं श्रृंखलाओं से हम अलग हो गए हैं।
आध्यात्मिक रूप से अनिवार्य अस्त्र-शस्त्र हीनता से हम दुर्बल बन गए हैं और एक पेशेवर विदेशी सेना की उपस्थिति से हम प्रतिरोध की भावना के साथ हम यह सोचने पर मजबूर हैं कि हम अपनी देखभाल स्वयं नहीं कर सकते या एक विदेशी आक्रामक से रक्षा नहीं कर सकते, अथवा चोरों, लुटेरों और बदमाशों के हमलों से अपने भाइयों और परिवारों की रक्षा भी नहीं कर सकते।
हम इसे मानव जाति और भगवान के प्रति अपराध मानते हैं कि हम एक ऐसे शासन को चलने दें जिसने हमारे देश में यह बड़ी आपदा पैदा की है। यद्यपि हम जानते हैं कि हमारी स्वतंत्रता पाने का सबसे प्रभावी तरीका हिंसा के माध्यम से नहीं है अत: हम स्वयं को इस प्रकार तैयार करते हैं कि हम ब्रिटिश सरकार से सभी स्वैच्छिक सहयोग वापस लें और करों के भुगतान नहीं करने सहित नागरिक सविनय अवज्ञा के लिए तैयार हो जाएं। हम इस पर सहमत हैं कि यदि हम स्वैच्छिक सहयोग वापस ले लें और उकसाए जाने पर भी हिंसा के बिना करों का भुगतान करना बंद कर दें, इस अमानवीय नियम की आवश्यकता को आश्वस्त किया जाता है। अत: हम पूर्ण स्वराज की स्थापना के प्रयोजन हेतु समय- समय पर कांग्रेस द्वारा जारी अनुदेशों को एतदद्वारा सत्य निष्ठापूर्वक पूरा करने का संकल्प लेते हैं।
ABHINAV TUMNE APNE GREAT FREEDOMFIGHTER BABA KE CHARNO MAI SAHI PRAKAR SE NAMAN KIYA HAI
भाई आदर्श जी। श्रद्धेय करूणेश जी की स्म़तियों को झकझोरती बेवसाइट निर्माण के लिए आपको बारंबार साधुवाद। श्रद्धेय करूणेशजी का मुझपर भी वरद हस्त रहा। उनमें देश के समसामयिक विषयों पर मेरा उनसे गहन चिंतन-मंथन होता रहता था। वह आजीवन गांधीवादी तथा नैतिक मूल्यों के हिमायती रहे। उनका लेखन वस्तुत जन-जन तक पहुंचना चाहिए।
Well Done, Abhinav 🙂