जीवन
कीर्ति रक्षा का अनुकरणीय प्रयास
बंधुवर रोशन लाल जी गुप्त “करुणेश” को मैं बहुत वर्षों से जनता हूँ और मेरे ह्रदय में उनके त्याग तथा बलिदान के प्रति श्रद्धा भी है. बावजूद तमाम कठिनाइयों के वे अपने ह्रदय के भावों को जनता के सामने रखते रहे हैं और उनके लेखों कि संक्या हज़ार तक पहुँच चुकी है.
करुणेश जी ने क्रांति तथा शांति दोनों पथो पर चल कर देश को पराधीनता से मुक्त करने का प्रयास किया है. वे १९३०-३१ में “बाल भारत” सभा के सदस्य बन गए थे और आगे चल कर १९३१-३२ के आंदोलनों में जेल कि यंत्रणाए सहन की. १९४० में वासुदेव गुप्त व रामप्रसाद भारतीय के सहयोग से “त्रिकंटक दल” की स्थापना कर २७ सितम्बर, १९४० को आगरा के कलक्टर हार्डी पर बम विस्फोट कराया और लगभग डेढ़ वर्ष तक भूमिगत रहे. इस प्रकार एक लम्बे समय तक भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अपनी सुख सुविधाओं की आहुति दे कर अपने जीवन को संकट में डालते रहे.
अपने मिशन की सफलता के लिए “आशा” तथा “उषा” आदि पत्रों का संपादन किया और “अर्जुन”, “साप्ताहिक हिंदुस्तान”, “नवभारत टाइम्स”, “अमर उजाला”, “स्वराज्य टाइम्स” तथा अन्य अनेक छोटे-बड़े पत्रों द्वारा अपने विचारों को लेखों के रूप में प्रकाशित करते आ रहें हैं.
करुणेश जी पूज्य महात्मा गाँधी तथा पंडित जवाहरलाल नेहरु आदि महान नेताओं के विरोधिओं के विरोध में आन्दोलन व अनशन करते रहे हैं. पूज्य बापू के नाम का “संवत” चले, इस विषय को लेकर तो एक आन्दोलन ही चलाया था.
देश सेवा की बलिवेदी पर करुणेश जी ने अपना संपूर्ण जीवन सुख ही चढ़ा दिया है. उनकी नेत्र ज्योति ही बम कांड में छतिग्रस्त को गयी थी, जिसे किसी भी प्रकार पुनः प्राप्त न किया जा सका.
रोशन लाल जी ने अपनी नेत्र ज्योति मंद पड़ जाने पर भी लेखन कार्य में कोई बाधा नहीं पड़ने दी. उन्होंने हजारों लेख बोल कर ही लिखाये हैं और इस प्रकार उन्होंने अपने मिशन को जारी रखा है. उनका सैनिक रूप तो प्रशंशनीय है ही, पत्रकार रूप भी अनुकरणीय है. असाधारण बाधाओं के होने पर भी वे तन-मन-धन से अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते रहे हैं. वे अब तक लगभग ५ हज़ार लेख पत्र पत्रिकाओं में छपवा चुके हैं. वे कवी भी हैं और उनकी प्रेरणा-पद कवितायेँ जनता तक पहुँच भी चुकी हैं.
बनारसीदास चतुर्वेदी
(पद्म-विभूषण, डी. लिट., साहित्य वाचस्पति, साहित्य वारिधि, साहित्य मार्तंड)
फिरोजाबाद (जि. आगरा)
१६ जनवरी, १९८५.
(स्रोत: श्री रोशन लाल गुप्त, करुणेश अभिनंदन ग्रंथ, प्रकाशित – अक्टूबर, १९८७.)
abhinav ka abhinav prayas, great homage to his grandpaa. keep it up.
thanks for your great worship to my great father respected KARUNESHJEE, your BAABAASHREE also, we all are very much impressed with your work, well done. We all are always with u at every step in this regard.
Good abhinav….well done keep it up…
jo bhara nahi hai bhavo se bahti jismai ras dhar nahi
wo hridaya nahi hai pathar hai jis mai swadesh ka pyar nahi
abhinav m proud of you. you have done a great job to highlight noble acts of brave freedom fighter shri KARUNESH JI
Well Done Abhinav.
Abhinav,
Tumne jo ye karya kiya hai uss se pure rastra evam samaj me hamare pitaji Shri Karunesh ji ke dwara kiye gaye mahan karyo se sabhi ko prerna mil rahi hai.
Tumhe iss athak prayas ke liye tumhare BABA Shri ka varadhast ashirvaad mil raha hai aur aage bhi milta rahega.
“Maa shardey” se prathna hai ki veh tumko evam tumhare sabhi bhai-behno ko bhi aise sudbhudi pradan kare.
Hare Krishna
THIRTEENTH PUNYATIHI PAR KARUNESH-PARIVAR KI OR SE SADAR SHRIDDHANJALI.
sabhi shubhchintako ko dhamyavad
it really very pleasing that such a great personality belong to agra. i am really amazed and bless by god. i wish him a healthy life. god bless him
vikas singh
bahut badiya….
बहुत अच्छा है ये…..अति उत्तम….
This is an insight into Renus grandfathers life,
aaj patrikarita -divas par poojya pitasri karunesh ji ko koti-koti pranam/////
he is great man.
आज पूज्य पिताश्री स्वर्गीय रोशन लाल गुप्त “करुणेश” की १६ वी पुण्य तिथि पर सादर नमन एवं भाव पूर्ण श्रृद्धांजलि …….
करुणेश परिवार
hI,During my childhood may be i was like 12 year old i along with my grandfather(Deviprasad Gupta) visited Roshanlal gupta,He was my grandfather friend before independence.
He give us a book in which an article about my own grandfather and my maternal grandfather( My Nana) name was mention.
Through that book i came to know why my grandfather left Agra and settled in Mumbai before independence as british police was harrasing my grandfather for whereabout of Mr Roshanlal Karunesh.
Can i have the copy of that book or can i download a copy from website or internet.
Thanks in Advance.