क्रांतिकारियों के सिंहनाद
अंगारो पर चलने वाले पराक्रमी विप्लवी महान|
नील गगन में गूँज राजे हैं, उन विभूतियों के बलिदान||
ब्रिटिश शासकों का रक्ते थे, चूर-चूर अभिमान घमंड|
बर्बरता के साम्राज्य में, अमानुषिक पाते थे दंड||
अंडमान की प्राचीरों पर, अंकित है उनका इतिहास|
कारागृह की कोठरियों में, युगों-युगों तक पाया त्रास||
बलि वेदी पर झूल गये थे, हंसते-हंसते वे प्राणवीर|
ज़ुल्म सितम गोराशाही के, कर न सके थे अभी अधीर||
निर्वासन की सही यातना, कभी भूमिगत भी हो जाते|
छद्म भेष में नवयुवकों के, शोणित में शोले भड़कते||
नौकरशाही नृशंसता का लेते थे जमकर प्रतिशोध|
कायर क्रूर अकर्मण्यो पर, कभी उमड़ पड़ता था क्रोध||
अन्यायी ताना शाहों से, करते थे सशस्र संग्राम|
सुख की नींद न सो पाते थे, कभी न करते थे विश्राम||
शीश चढ़ाने मात्रभूमि पर, जाते थे वक्षस्थल तान|
सींचा अपने रक्त रुधिर से, भारत माता का उद्यान||
वसुंधरा पर कहीं कहीं हों, पराधीनता के अपवाद|
तरुणो के कष्ठों से निकलें, क्रांतिकारियों के सिहनाद||
— करुणेश